अंबेडकर जयंती की उपलक्ष पर खड़गपुर में 14 अप्रैल को सम्मान समारोह का आयोजन किया गया
अंबेडकर जयंती की उपलक्ष पर खड़गपुर में 14 अप्रैल को सम्मान समारोह का आयोजन किया गया | अंबेडकर जयंती के पावन अवसर पर, सामाजिक संगठन पार्वती चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा खड़गपुर शहर के न्यू सेटलमेंट इलाके में पीएनके परिसर के सभागार में एक भव्य सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। इस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित दुखु माझी (गाछ दादू) उपस्थित थे। अंबेडकर जयंती की उपलक्ष पर खड़गपुर में 14 अप्रैल को सम्मान समारोह का आयोजन किया गया |
को अंबेडकर जयंती के पावन अवसर पर, सामाजिक संगठन पार्वती चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा खड़गपुर शहर के न्यू सेटलमेंट इलाके में पीएनके परिसर के सभागार में एक भव्य सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। इस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित दुखु माझी (गाछ दादू) उपस्थित थे। अंबेडकर जयंती की उपलक्ष पर खड़गपुर में 14 अप्रैल को सम्मान समारोह का आयोजन किया गया |
समारोह का शुभारंभ:
समारोह का शुभारंभ दीप प्रज्वलन और बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा पर माल्यार्पण के साथ हुआ। इसके बाद पार्वती चैरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष ने स्वागत भाषण दिया। उन्होंने समारोह के आयोजन का उद्देश्य समझाया और सामाजिक कार्यकर्ताओं के योगदान की सराहना की।व् अंबेडकर जयंती की उपलक्ष पर खड़गपुर में 14 अप्रैल को सम्मान समारोह का आयोजन किया गया |
सम्मानित व्यक्तियों का परिचय:
इसके बाद, सम्मानित होने वाले व्यक्तियों का परिचय दिया गया। इसमें भारत के विभिन्न राज्यों जैसे उड़ीसा, बंगाल, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र से आए सामाजिक संगठनों के सदस्य शामिल थे। इन सामाजिक कार्यकर्ताओं ने शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण, बाल कल्याण, गरीबी उन्मूलन और पर्यावरण संरक्षण जैसे क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान दिया है।
खड़गपुर के पत्रकारों का सम्मान:
इसके अलावा, खड़गपुर शहर के पत्रकारों को भी सम्मानित किया गया। इन पत्रकारों ने समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए, सच और निष्पक्षता के साथ खबरों को जनता तक पहुंचाया है।
गाछ दादू का संबोधन:
समारोह का मुख्य आकर्षण रहा दुखु माझी (गाछ दादू) का संबोधन। उन्होंने अपने अनुभवों को साझा करते हुए समाजसेवी बनने के लिए प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि समाजसेवी बनने के लिए कड़ी मेहनत, निस्वार्थ भावना और सामाजिक बुराइयों से लड़ने की हिम्मत की आवश्यकता होती है। उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे समाज के विकास में योगदान दें और बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर के आदर्शों को अपनाएं।
अंबेडकर जयंती की उपलक्ष पर खड़गपुर में 14 अप्रैल को सम्मान समारोह का आयोजन किया गया |
समारोह का समापन:
समारोह का समापन धन्यवाद ज्ञापन और राष्ट्रगान के साथ हुआ। सभी उपस्थित अतिथियों और सम्मानित व्यक्तियों ने इस समारोह को सफल बनाने के लिए पार्वती चैरिटेबल ट्रस्ट का धन्यवाद किया।
डॉ. भीमराव अंबेडकर: जयंती और जीवन परिचय
जन्म और प्रारंभिक जीवन:
डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर, जिन्हें “बाबासाहेब” के नाम से भी जाना जाता है, का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू में हुआ था। वे 14 भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। उनके पिता रामजी मालोजी सकपाल, ब्रिटिश सेना में सूबेदार थे। जाति व्यवस्था के कारण, उन्हें बचपन में ही भेदभाव का सामना करना पड़ा। अंबेडकर जयंती की उपलक्ष पर खड़गपुर में 14 अप्रैल को सम्मान समारोह का आयोजन किया गया |
शिक्षा और विदेश यात्रा:
अंबेडकर जी अत्यंत मेधावी छात्र थे। उन्होंने अपनी शिक्षा का आरंभ प्राथमिक विद्यालय से किया और उच्च शिक्षा के लिए मुंबई चले गए। जातिगत भेदभाव के बावजूद, उन्होंने एल्फिंस्टन हाई स्कूल से मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की। बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ की छात्रवृत्ति प्राप्त कर वे आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका गए। 1915 में उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम.ए. की उपाधि प्राप्त की और 1917 में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस से डी.एस.सी. की उपाधि भी प्राप्त की। अंबेडकर जयंती की उपलक्ष पर खड़गपुर में 14 अप्रैल को सम्मान समारोह का आयोजन किया गया |
सामाजिक कार्य और संघर्ष:
भारत लौटने के बाद, अंबेडकर जी ने वकील के रूप में काम करना शुरू किया। उन्होंने दलितों और वंचित समुदायों के उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने जाति व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाई और सामाजिक सुधारों के लिए अथक प्रयास किए।व् अंबेडकर जयंती की उपलक्ष पर खड़गपुर में 14 अप्रैल को सम्मान समारोह का आयोजन किया गया |
संविधान निर्माण में योगदान:
अंबेडकर जी को भारत के संविधान का शिल्पकार माना जाता है। स्वतंत्र भारत की संविधान सभा के अध्यक्ष के रूप में, उन्होंने भारत के संविधान का मसौदा तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने संविधान में मौलिक अधिकारों, समानता, स्वतंत्रता और न्याय की अवधारणाओं को शामिल करवाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
राजनीतिक जीवन:
अंबेडकर जी ने राजनीतिक क्षेत्र में भी सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने दलितों और वंचित समुदायों के अधिकारों की रक्षा के लिए कई राजनीतिक दलों का गठन किया। वे 1952 में संसद के लिए चुने गए और 1956 तक कानून मंत्री रहे। अंबेडकर जयंती की उपलक्ष पर खड़गपुर में 14 अप्रैल को सम्मान समारोह का आयोजन किया गया |
धर्म परिवर्तन:
1956 में, अंबेडकर जी ने अपने लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपना लिया। उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उनका मानना था कि बौद्ध धर्म ही जाति व्यवस्था से मुक्ति का एकमात्र रास्ता है। अंबेडकर जयंती की उपलक्ष पर खड़गपुर में 14 अप्रैल को सम्मान समारोह का आयोजन किया गया |
निधन और विरासत:
6 दिसंबर 1956 को अंबेडकर जी का निधन हो गया। उनकी मृत्यु भारत के लिए एक अपूरणीय क्षति थी। लेकिन, उनके विचार और कार्य आज भी प्रासंगिक हैं। उन्हें भारत के सबसे महान सामाजिक सुधारकों और विचारकों में से एक माना जाता है। अंबेडकर जयंती की उपलक्ष पर खड़गपुर में 14 अप्रैल को सम्मान समारोह का आयोजन किया गया |
अंबेडकर जयंती:
अंबेडकर जी की जयंती, 14 अप्रैल, को पूरे भारत में “भारत संविधान दिवस” और “अंबेडकर जयंती” के रूप में मनाई जाती है। इस दिन, देशभर में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिसमें उनके जीवन और कार्यों को याद किया जाता है।
निष्कर्ष:
डॉ. भीमराव अंबेडकर एक महान व्यक्तित्व थे जिन्होंने भारत के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने दलितों और वंचित समुदायों के उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया
डॉ. भीमराव अंबेडकर: संघर्षों से भरा जीवन
डॉ. भीमराव अंबेडकर, भारत के संविधान निर्माता और दलित अधिकारों के प्रबल समर्थक, जिन्होंने अपना पूरा जीवन सामाजिक न्याय और समानता के लिए समर्पित कर दिया। उनका जीवन संघर्षों से भरा रहा, जहाँ उन्होंने जातिगत भेदभाव, अस्पृश्यता और अन्याय के खिलाफ लगातार लड़ाई लड़ी।
जन्म और प्रारंभिक जीवन:
14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के मऊ में जन्मे, अंबेडकर को बचपन से ही जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा। शिक्षा प्राप्त करने के लिए उन्हें कठिन संघर्ष करना पड़ा, और कई बार उन्हें अपमान और बहिष्कार का सामना करना पड़ा।
शिक्षा और सामाजिक कार्य:
अंबेडकर ने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से शिक्षा प्राप्त की, जहाँ उन्होंने अर्थशास्त्र और कानून में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। भारत लौटने के बाद, उन्होंने वकील और शिक्षक के रूप में काम किया, और दलित समुदाय के उत्थान के लिए कई सामाजिक कार्य किए।
संघर्ष और राजनीतिक जीवन:
अंबेडकर ने जाति व्यवस्था और अस्पृश्यता के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने कई आंदोलनों का नेतृत्व किया, कानूनों में सुधार की वकालत की, और दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। 1932 में, उन्होंने गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया, जहाँ उन्होंने दलितों के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्र की मांग रखी।
स्वतंत्र भारत और संविधान निर्माण:
स्वतंत्र भारत में, अंबेडकर को संविधान निर्माण सभा का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उन्होंने संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और इसे सामाजिक न्याय और समानता के सिद्धांतों पर आधारित बनाया।
बौद्ध धर्म अपनाना और अंतिम वर्ष:
1956 में, अंबेडकर और उनके अनुयायियों ने बौद्ध धर्म अपना लिया। 6 दिसंबर 1956 को उनका निधन हो गया, लेकिन उनके विचार और कार्य आज भी प्रासंगिक हैं।
डॉ. अंबेडकर के जीवन से प्रेरणा:
डॉ. अंबेडकर का जीवन संघर्ष, दृढ़ संकल्प और सामाजिक न्याय के लिए समर्पण की प्रेरणादायक कहानी है। उन्होंने साबित किया कि कड़ी मेहनत और दृढ़ इच्छाशक्ति से कोई भी बाधा को पार कर सकता है।
निष्कर्ष:
डॉ. भीमराव अंबेडकर, भारत के महानतम नेताओं में से एक, जिन्होंने अपना जीवन वंचितों के उत्थान और समान समाज के निर्माण के लिए समर्पित कर दिया। उनका जीवन और कार्य हमें प्रेरित करते हैं कि हम भी सामाजिक न्याय और समानता के लिए सदैव संघर्ष करते रहें। अंबेडकर जयंती की उपलक्ष पर खड़गपुर में 14 अप्रैल को सम्मान समारोह का आयोजन किया गया |
डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर के माता-पिता और पारिवारिक जीवन:
माता-पिता:
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पिता: रामजी सकपाल
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वे मराठी समुदाय के एक “सूबेदार” थे, जो ब्रिटिश सेना में काम करते थे।
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वे कबीर पंथ के अनुयायी थे और जाति व्यवस्था के कट्टर विरोधी थे।
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माता: भीमाबाई
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वे एक गृहिणी थीं और धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं।
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वे भी जाति व्यवस्था के खिलाफ थीं और अपने बच्चों को शिक्षा दिलाने में विश्वास रखती थीं।
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पारिवारिक जीवन:
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डॉक्टर अम्बेडकर 14 बच्चों में सबसे छोटे थे, जिनमें 9 की मृत्यु बचपन में ही हो गई थी।
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उनका बचपन गरीबी में बीता, लेकिन उनके माता-पिता ने उन्हें शिक्षा दिलाने के लिए कड़ी मेहनत की।
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जाति व्यवस्था के कारण उन्हें बचपन में ही भेदभाव का सामना करना पड़ा।
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1906 में, 15 साल की उम्र में, वे उच्च शिक्षा के लिए मुंबई गए।
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उन्होंने विदेश में भी अध्ययन किया, कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से स्नातक और डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
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1924 में, वे भारत लौटे और वकील, शिक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में काम किया।
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उन्होंने अपना जीवन दलितों और वंचितों के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया।
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1956 में, उनका निधन हो गया। अंबेडकर जयंती की उपलक्ष पर खड़गपुर में 14 अप्रैल को सम्मान समारोह का आयोजन किया गया |
डॉक्टर अम्बेडकर के माता-पिता और पारिवारिक जीवन के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें:
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उनके माता-पिता ने उन्हें शिक्षा और समानता के महत्व के बारे में सिखाया।
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जाति व्यवस्था के खिलाफ उनका संघर्ष उनके बचपन के अनुभवों से प्रेरित था।
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वे एक समर्पित पति और पिता थे।
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उनका परिवार उनके जीवन और कार्य में एक महत्वपूर्ण स्रोत था।
निष्कर्ष:
डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर भारत के एक महान नेता थे, जिन्होंने देश के सामाजिक और राजनीतिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके माता-पिता और पारिवारिक जीवन ने उन्हें आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अंबेडकर जयंती की उपलक्ष पर खड़गपुर में 14 अप्रैल को सम्मान समारोह का आयोजन किया गया |
डॉ॰ भीमराव अंबेडकर के विरोधी उन्हें किस नज़र से देखते थे?
डॉ॰ भीमराव अंबेडकर, भारत के संविधान निर्माता और दलित अधिकारों के प्रबल समर्थक, एक विवादास्पद व्यक्ति थे। उनके जीवनकाल में, उन्हें कई विरोधियों का सामना करना पड़ा, जिन्होंने उन्हें विभिन्न दृष्टिकोणों से देखा। अंबेडकर जयंती की उपलक्ष पर खड़गपुर में 14 अप्रैल को सम्मान समारोह का आयोजन किया गया |
जाति व्यवस्था के रक्षक:
अंबेडकर के सबसे कट्टर विरोधी वे थे जो जाति व्यवस्था का समर्थन करते थे। उनका मानना था कि अंबेडकर जाति व्यवस्था को कमजोर कर रहे थे और हिंदू धर्म की नींवों को हिला रहे थे। वे अस्पृश्यता के उन्मूलन और दलितों को समान अधिकार देने के उनके प्रयासों का विरोध करते थे। अंबेडकर जयंती की उपलक्ष पर खड़गपुर में 14 अप्रैल को सम्मान समारोह का आयोजन किया गया |
हिंदुत्ववादी:
कुछ हिंदुत्ववादी नेता अंबेडकर को हिंदू विरोधी मानते थे। उनका मानना था कि अंबेडकर ने बौद्ध धर्म अपनाकर हिंदू धर्म को कमजोर किया था। वे अंबेडकर के धार्मिक सुधारों और हिंदू राष्ट्रवाद के उनके विरोध का भी विरोध करते थे। अंबेडकर जयंती की उपलक्ष पर खड़गपुर में 14 अप्रैल को सम्मान समारोह का आयोजन किया गया |
सांप्रदायिकवादी:
कुछ मुस्लिम नेता भी अंबेडकर के आलोचक थे। उनका मानना था कि अंबेडकर ने पाकिस्तान के निर्माण का समर्थन किया था और मुसलमानों के हितों को धोखा दिया था। वे अंबेडकर के धर्मनिरपेक्षता के विचार का भी विरोध करते थे।
राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी:
अंबेडकर के कई राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी भी थे जिन्होंने उन्हें एक खतरे के रूप में देखा। वे अंबेडकर की बढ़ती लोकप्रियता और प्रभाव से ईर्ष्या करते थे और उन्हें सत्ता से हटाने की कोशिश करते थे।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ये सभी दृष्टिकोण अंबेडकर के विचारों और कार्यों का गलत चित्रण करते हैं। अंबेडकर एक जटिल और बहुआयामी व्यक्ति थे जिन्होंने भारत के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। अंबेडकर जयंती की उपलक्ष पर खड़गपुर में 14 अप्रैल को सम्मान समारोह का आयोजन किया गया |
निष्कर्ष:
डॉ॰ भीमराव अंबेडकर एक महान विचारक, समाज सुधारक और कानूनविद् थे जिन्होंने भारत के संविधान को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं और वे सामाजिक न्याय और समानता के लिए संघर्ष करने वालों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं।
डॉ. आंबेडकर के जीवन के कुछ सुखद लम्हों, वाक्यों और समय के बारे में:
सुखद लम्हे:
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14 अप्रैल 1916: डॉ. आंबेडकर को कोलंबिया विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि मिली। यह उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण क्षण था, क्योंकि यह उनकी कड़ी मेहनत और समर्पण का प्रमाण था।
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18 अप्रैल 1927: डॉ. आंबेडकर ने ‘मैट्रिक परीक्षा में अछूतों के लिए छूट’ प्राप्त करने के लिए महात्मा गांधी के साथ साइमन कमीशन का बहिष्कार किया। यह उनके सामाजिक न्याय के प्रति दृढ़ संकल्प का प्रतीक था।
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26 नवंबर 1949: डॉ. आंबेडकर ने भारत के संविधान का मसौदा तैयार करने वाली संविधान सभा की अध्यक्षता ग्रहण की। यह उनके जीवन का एक ऐतिहासिक क्षण था, क्योंकि उन्होंने भारत के लोकतंत्र की नींव रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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25 जनवरी 1950: भारत का संविधान लागू हुआ, जिसे डॉ. आंबेडकर ने मुख्य रूप से तैयार किया था। यह उनके जीवन की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी, क्योंकि उन्होंने भारत के सभी नागरिकों के लिए समानता और न्याय सुनिश्चित करने में मदद की। अंबेडकर जयंती की उपलक्ष पर खड़गपुर में 14 अप्रैल को सम्मान समारोह का आयोजन किया गया |
वाक्य:
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“मैं एक नास्तिक हूं और मैं नास्तिक रहूंगा।” – यह वाक्य डॉ. आंबेडकर की धार्मिक मान्यताओं के बारे में उनकी स्पष्टता और ईमानदारी को दर्शाता है।
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“शिक्षा ही एकमात्र ऐसा हथियार है जिससे आप अपनी गरीबी को मिटा सकते हैं।” – यह वाक्य शिक्षा के महत्व और सामाजिक परिवर्तन लाने में इसकी क्षमता पर डॉ. आंबेडकर के दृढ़ विश्वास को दर्शाता है। अंबेडकर जयंती की उपलक्ष पर खड़गपुर में 14 अप्रैल को सम्मान समारोह का आयोजन किया गया |
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“संविधान केवल एक कागज का टुकड़ा है। यह लोगों की आत्मा में लिखा होना चाहिए।” – यह वाक्य संविधान के महत्व और इसे जीवंत बनाने के लिए लोगों की जिम्मेदारी पर डॉ. आंबेडकर के जोर को दर्शाता है। अंबेडकर जयंती की उपलक्ष पर खड़गपुर में 14 अप्रैल को सम्मान समारोह का आयोजन किया गया |
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“मैंने अपना जीवन समाज के पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया है।” – यह वाक्य सामाजिक न्याय के प्रति डॉ. आंबेडकर की प्रतिबद्धता और उनके जीवन के लक्ष्य को दर्शाता है। अंबेडकर जयंती की उपलक्ष पर खड़गपुर में 14 अप्रैल को सम्मान समारोह का आयोजन किया गया |
समय:
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1920 का दशक: डॉ. आंबेडकर ने जाति व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई शुरू की और अछूतों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई।
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1930 का दशक: डॉ. आंबेडकर ने ‘मैट्रिक परीक्षा में अछूतों के लिए छूट’ प्राप्त करने के लिए आंदोलन किया और ‘भारतीय संविधान’ का मसौदा तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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1940 का दशक: डॉ. आंबेडकर ने भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष में भाग लिया और ‘पाकिस्तान’ के विभाजन का विरोध किया। अंबेडकर जयंती की उपलक्ष पर खड़गपुर में 14 अप्रैल को सम्मान समारोह का आयोजन किया गया |
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1950 का दशक: डॉ. आंबेडकर ने ‘बौद्ध धर्म’ अपनाया और ‘दलित अधिकार आंदोलन’ की स्थापना की।